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त्वीले धारो बौला म्योर मोतिया बलदा रे

lekhan vani
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इस कहावत का अर्थ यह है की पहाड़ में जो है वो बैल और गाय की कितनी क़द्र होती है और कितनी सेवा की जाती है ठीक इसके विपरीत मैदानी शेत्रो में बैलो की कोई क़द्र नहीं होती वह भूखे प्यासे रहते हैं और उनको पानी तक के लिए नहीं पूछा जाता है पहाड़ में एक किस्सा है jhan जन्मोक ब्योल पहाड़ jhan जन्मो च्योल इस कहावत का यह अर्थ है की मैदानी शेत्रों में बैलो को जन्म नहीं लेना चाहिए क्योंकि मैदानी शेत्रों में बैलो की कोई देखभाल नहीं होती और पहाड़ी शेत्रों में लड़के को जन्म नहीं लेना चाहिए क्योंकि पहाड़ में लडको को दहेज़ नहीं मिल पाता खेर दहेज़ न लेना तो अच्छी बात है पहाड़ में जब लड़के की शादी होती है तो लड़के वाले यह कहते हैं की तुम्हारी लड़की सुशिल गुणवान और सभ्य है हमें दहेज़ नहीं चाहिए हमें तो सिर्फ लड़की चाहिए यह पहाड़ के लोगो की एक बहुत अच्छी बात है लेकिन मैदानी शेत्रों में जो बैलो की बेकद्री है वो बुरी बात है पहाड़ में बैलो की इतनी देखभाल होती है की खेत जोतते समय पहले बैलो को खूब अच्छी तरह खाना पानी दिया जाता है तब उन्हें खेतो में जुताई के लिए ले जाते हैं खेत जोतते समय भी बिच बिच में बैलो को खाना पानी दिया जाता है खेत की जुताई भी pratah kaal thandi thandi hawaon में किया जाता है ताकि बैलों को धुप न सताये और जब हरी हरी फसलो से खेत लहलहाते हैं तो इस सफलता का श्रेय भी बैलो को मिलता है त्विले धारो बौला मेरो मोतिया बलदा रे इसी बात को दर्शाता है मोती नाम के बैल का मालिक अपने खेतो को हरा भरा देखते हुए अपने बैल की पीठ थपथपाते हुए कहता है हे मोती बैल तेरी मेहनत की वजह से ही आज मेरे खेत हरे भरे लहलहा रहे हैं इसी तरह पहाड़ के शेत्रों में और भी कई अच्छी कथाएँ हैं जिसका उल्लेख समय मिलने पर किया जाएगा आज बस इतना है
लेखक अजय पाण्डेय

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