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यज्ञोपवित संस्कार की विधि और पूजा का विधान और यज्ञोपवित के बारे में

lekhan vani
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जीवन में सोलह संस्कार होते हैं नामकरण अन्नप्राशन कर्णवेध और विवाह उससे पहले एक संस्कार होता है यज्ञोपवित संस्कार यज्ञोपवित पहले इतिहास से ही किया जाता है रामचंद्र जी का भी यज्ञोपवित भी गुरुकुल भेजने से पहले हुआ था और कृष्ण का भी यज्ञोपवित संस्कार हुआ था यज्ञोपवित संस्कार का महत्त्व प्राचीनकाल में चला आया था वैदिक आर्यानो का भी यज्ञोपवित संस्कार हुआ था और तभी आर्यन गुरुकुल आ गए थे उसके बाद उन्होंने शिक्षा ग्रहण की यज्ञोपवित से द्विजत्व जाग्रत होता है और यज्ञोपवित से द्विज सिद्ध होता है और यज्ञोपवित संस्कार की विधि भी बहुत भारी होती है पहले वेदी बनती है उसके बाद गृह्जाग होता है और गृह्जाग करने में कुश्कंदिका का भी विधान जरुरी होता है और उसके बाद यज्ञ होने के बाद चूडाकर्म संस्कार होता है उसके बाद यज्ञोपवित होता है उसके बाद दीक्षा देने के बाद यज्ञोपवित संस्कार पूर्ण माना जाता है उसके बाद यज्ञोपवित पूर्ण होता है अब में यज्ञोपवित का वर्णन करता हूँ यज्ञोपवित की सात लड़ें और सात व्याहतियाँ होती हैं और उन सात लड़ों में गायत्री मंत्र की शक्तियां होती हैं तभी यज्ञोपवित का द्विजत्व सिद्ध होता है और यज्ञोपवित की जो लड़ें होती हैं और उसमें जाप की शक्तियां समाहित होती हैं और सारी शक्तियां यज्ञोपवित में समां जाती हैं उसके बाद जाप करने के बाद सारी शक्तियां उसमें प्राप्त हो जाती हैं और सारी शक्तियां उसको प्राप्त होती हैं इस यज्ञोपवित में सारे जाप की शक्तियां समाहित होती हैं और यज्ञोपवित जीवन में सबसे बड़ा संस्कार होता है इससे बढ़िया संस्कार और कुछ नहीं हैं
धन्यवाद

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