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अबला जीवन हाय तुम्हारी येही कहानी
आँचल में है दूध आखों में पानी
यह पंक्तियाँ राष्ट्रीय कवी स्वर्गीय श्री मैथिलीशरण गुप्त जी ने उस समय लिखी थी जब यह समाज अज्ञानता और रूढ़ीवाद के घोर अंधकार से गुजर रहा था पुरुष प्रधान इस देश में उस समय नारी जाती पर जो अत्याचार होते थे उसी दुर्दशा का वर्णन करते हुए तथा नारी जाती को नरक के इस गर्त से उबारने के लिए मैथिलीशरण गुप्त जी ने उक्त पंक्तियों के द्वारा नारी जाती की दीनदशा का वर्णन किया उस समय बाल विवाह हुआ करते थे जिसको वर्त्तमान समय में colors चैनल द्वारा बालिका वधु नामक नाटक के द्वारा दर्शाया जा रहा है विधवा हो जाने पर जीवन भर वह अपने अरमानो का गला घोटकर सामाजिक प्रताडनाओं को सहते हुए अपना जीवन बिता देती थी आज जब देश इक्कीसवी सदी के दौर से गुजर रहा है लड़कियां लडको से आगे निकल रही है नारी पुरुष के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर हर शेत्र में आगे बढ़ रही है और कन्या भ्रूण हत्या का विरोध हो रहा है ऐसे आधुनिक दौर में भी नारी पूर्ण तरह सुरक्षित नहीं है कहने का तात्पर्य है की जहाँ एक और बेटी बचाओ अभियान चलाया जा रहा है तो दूसरी और बेटियों का अपहरण और बलात्कार जैसी घटनाएँ हो रही है अर्थात अबला जीवन हाय तुम्हारी येही कहानी सही मायने पर अभी भी अपना अधिपत्य जमाये हुए है समाज अभी भी पूर्ण से अन्धविश्वास से मुक्त नहीं हुआ है दहेज़ के बोझ से लदे हुए माता पिता अपने बच्चो को यदि स्वेच्छिक अर्थात प्रेम विवाह करने में उनका साथ दे और उसे arrange marriage की ही तरह सामाजिक तौर पर कर दें तो काफी हद तक अपहरण और बलात्कार जैसी घटनाओं पर रोक लग जायेगी केवल सरकार की कोशिशों से कुछ नहीं होगा समाज और समाज में रह रहे प्रत्येक व्यक्ति को नयी पीढ़ी की भावनाओं को समझना होगा विज्ञानं और विकास के इस दौर में जबकि शिक्षा का काफी विकास हो गया लड़के लडकियाँ पढ़ लिखकर अपना भला बुरा स्वयं समझने लगे हैं तो उन्हें अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार भी हमें ही देना होगा तभी हम सामाजिक कुरीतियों पर विजय पा सकते हैं और नारी जाती पर होने वाले अत्याचारों से मुक्ति पा सकते हैं नारी जाती का सम्मान करते हुए में यही कहूँगा
नारी ऐसी होती है नारी नर की खान
नारी से नर होत हैं राम कृष्ण समान
समाजसेवी अजय पाण्डेय
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