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लेखन व चिंतन की व्यथा गाथा

lekhan vani
lekhan vani
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कागज पर कागज कलम पर कलम
करता जा रहा हूँ लेखन व चिंतन
सब बन गए कूड़े के ढेर
ऐसा है लेखन की दुनिया में अंधेर
क्या कोई है ऐसा इंसान
जो करे सही मायने पर लेखन चिंतन की पहचान
यदि है कोई ऐसा इंसान
उसे में मानता हूँ भगवान
नहीं तो सब बेकार है लेखन चिंतन नाकाम है
क्योंकि किसी को नहीं इसकी पहचान है
दुनिया में इंसान नहीं
सब हैवान है
तभी तो इस देश की यह पहचान है
देते है सभी दूसरों को दोष
सही अर्थो में अपनी नहीं पहचान है
धन्यवाद
कविताकार अजय पाण्डेय

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