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कुवारा हास्य कविता

lekhan vani
lekhan vani
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एक में ही हूँ जो रह गया कुवारा
सबकी किस्मत का चमकता सितारा
जितने गोरे काले हैं बीवी बच्चो वाले हैं
मेरा मुहूर्त आता है
तारा डूब जाता है
जाने कैसी चाल हुई
बीवियों की हड़ताल हुई
हाथ पंडित ने देखा है
दो बीवियों की रेखा है
दे दे कृष्ण मुरारी दे
गोरी दे या काली दे
लड्डू तुम्हे चढाऊंगा बूंदी तुम्हे खिलाऊंगा
में भटकू मंदिर से गुरुद्वारा
एक मैं ही हूँ जो रह गया कुवारा
धन्यवाद

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